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सरकार व प्रशासन पर पूर्व विधायक राम इकबाल ने उठाए सवाल।

 

स्वतंत्रविचार 24 (रिपोर्ट :-- ओम प्रकाश वर्मा)

सरकार व प्रशासन पर पूर्व विधायक राम इकबाल ने उठाए सवाल।

नगरा (बलिया). क्षेत्र की एक किशोरी के साथ हुई अमानवीय घटना में बुधवार की सायं उसके परिजनों से मिलने के बाद पूर्व विधायक और सपा नेता राम इकबाल सिंह ने प्रेसवार्ता में कहा कि लोग सवाल उठा रहे है कि आखिर एक किशोरी की हत्या कोई क्यों करना चाहेगा, न ही उसके पास कोई धन दौलत है ना ही कोई जमीन। फिर किस वजह से उसके साथ ऐसा कृत्य किया गया। लोगों को उसका जबाब चाहिये। एसपी का बयान मैने पढ़ा तो मन व्यथित हुआ। प्रशासन को लगे तो 5 या 9 सदस्यीय चिकित्सकों का पैनल गठित कर बीएचयू में ही एक बार और जांच कर ले। उसके साथ कोई घिनौना कार्य तो नहीं हुआ है ताकि लोगों के मन मे उठ रहे सवाल का सही जबाब मिल सके। इस सम्बन्ध मे न्याय की मांग करने वाले युवाओं पर मुकदमा दर्ज करना पुलिस की दमन नीति को दर्शा रही है। ताकि प्रशासन की गलत नीतियों का कोई विरोध दर्ज न करा सके। जो अंग्रेजों के शासन काल मे होता था। उसे इस समय दुहराया जा रहा है।
पूर्व विधायक ने कहा कि बलिया की ही किशोरी के साथ दिल्ली में हुई निर्भया कांड के बाद बना कानून भी ऐसे कृत्यों को रोक नहीं पा रही है। इसका कारण यही है कि लोग भयमुक्त है। सरकार बस चंद लोगों को ही अपराधी मान रही है। उसके इतर दूसरे पर ध्यान नहीं दे रही है। कुछ युवको ने बताया कि किशोरी के इलाज के लिए चंदा एकत्रित किया गया। जो चिंतनीय है क्योंकि सरकार का दायित्व बनता है कि दवा के अभाव में किसी की प्राण नहीं जानी चाहिए। इसके लिए डीएम से लगायत स्वास्थ्य महकमे, शासन तक अरबों रुपये का फण्ड होता है। तो इसमें सरकार क्यों नहीं मदद कर रही है। स्वास्थ्य मंत्री के छापे से मुझे लगा था कि अब स्वास्थ्य सेवाएं सुधर जायेगी लेकिन ऐसा नहीं हुआ। छापेमारी हुई लेकिन कोई कार्यवाई न होने से क्रियाएं वैसे ही चल रही है जैसे पहले चल रही थी। जिसका प्रमाण है आज यहां पर है।
गांव के कुछ युवाओं को जेल भेजे जाने के बाबत पूछने पर कहा कि प्रशासन दमन करना चाहती होगी। ऐसी कार्यवाई करके लोगों का मनोबल तोड़ना चाह रही होगी। ताकि कोई विरोध न कर सके। प्रशासन तो वही करती है जैसी सरकार चाहती है। अधिकारी कोई भी दोषी नहीं होता है सरकार की इच्छाओं का पालन करना ही कार्यपालिका का धर्म होता है। यह सरकारी रणनीति है। युवाओं को क्यों चंदा वसूलना पड़ा ? सरकार क्यों नहीं 10 लाख रुपये मुआवजा लाकर इनके परिवार को दे दिया। नारे से काम नहीं चलेगा। कब तक जुमला चलाओगे “बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ” इसमें प्रशासन के साथ साथ सरकार भी दोषी है। शासन को भी चाहिये की मामले की उच्चस्तरीय जांच कराकर पीड़ित को न्याय दिलाये।