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हर स्त्री की दिल की आवाज।

 


स्वतंत्रविचार 24 (रिपोर्ट :-- संदीप कुमार गुप्ता)

हर स्त्री की दिल की आवाज।

स्त्री हूँ मै
सब सम्भाल लेती हूँ
आँगन की रंगोली हो 
या दफ्तर की फाइलें 
परिवार की चिंता हो 
या बॉस की डाँट 
सारी के सारे
पल्लू से बाँध लेती हूँ 
स्त्री हूँ न
सब संभाल लेती हूँ 
  सुबह-सुबह जगना और किचन का काम सब समय से संभाल लेती हूं।
ननद के राज
देवर की शरारतें 
बच्चों की अठखेलियाँ
दादी माँ के नुस्खे 
पति का प्यार
सास ससुर की देखभाल 
ऑफिस मे दोस्तों संग 
धूम मचा लेती हूँ 
स्त्री हूँ न 
सब सम्भाल लेती हूँ 

सखी की शादी 
ड्रेस डिजाइन 
या हेयर स्टाइल 
पल में संवार देती हूँ 
बच्चों के स्कूल प्रोजेक्ट 
पिया जी के 
मनपसंद खाने का स्वाद 
चुटकियों मे भाग दौड़ के 
सब काम बना लेती हूँ 
स्त्री हूँ न 
सब सम्भाल लेती हूँ 

खुश होती हूँ
गर्व से झूमती हूँ
अपनों की ख्वाहिशों मे
दुनिया सजा लेती है,तो
हाँ हर कदम पर मै
सब सम्भाल लेती हूँ ,चाहे कोर्ट कचहरी या थाने सब पर मुस्कराहट भरी मेहनत से निपटा देती हूं।

पर
मै भी टूटती हूँ 
बिखरती हूँ 
कमजोर भी पड़ जाती हूँ 

काश
कोई_मुझे_भी_संभाल_ले
इस_ख्याल_से_नम_पलकों_को 
तकिए_से_बाँट 
फिर_मुस्कुरा_लेती_हूँ 

स्त्री_हूँ_न
सब_संभाल_लेती_हूँ।  

लेखिका रंजना पांडेय शिक्षिका बलिया