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गृहस्थ आश्रम में रहते हुए भी पवित्र जीवन तथा सत्कर्म करने वाला व्यक्ति भगवत गीता का अधिकारी होता है।

 

स्वतंत्रविचार 24 (रिपोर्ट :-- संदीप कुमार गुप्ता)

गृहस्थ आश्रम में रहते हुए भी पवित्र जीवन तथा सत्कर्म करने वाला व्यक्ति भगवत गीता का अधिकारी होता है।

दुबहर - सच्चे मन से अगर ईश्वर की प्रार्थना की जाए तो असंभव कार्य को भी संभव बनाने में प्रभु को देर नहीं लगती लेकिन प्रार्थना का लक्ष्य और उद्देश्य सही होना चाहिए । क्योंकि ईश्वर भक्तों का मान रखने के लिए प्रारब्ध और भाग्य में लिखी हुई बातों को भी  बदल देते हैं। उक्त बातें जनेश्वर मिश्र सेतु एप्रोच मार्ग के किनारे हो रहे चातुर्मास व्रत में मंगलवार की देर शाम प्रवचन करते हुए महान मनीषी  संत श्री त्रिदंडी स्वामी जी के शिष्य लक्ष्मी प्रपन्न जीयर स्वामी जी ने बताया । कहा कि मनुष्य को कर्म से पहले फल की इच्छा नहीं करनी चाहिए ,अपने लक्ष्य को पाने के लिए निरंतर कर्म करते रहना चाहिए। कहां की गृहस्थ रहते हुए भी पवित्र जीवन जीने वाला तथा सत्कर्म करने वाला व्यक्ति भगवत कृपा का अधिकारी होता है। प्रवचन के दौरान श्रीमद् भागवत कथा पर चर्चा करते हुए उन्होंने बताया कि भागवत को ही अमर कथा कहा जाता है। जब माता पार्वती ने भगवान शिव से कथा सुनने की जिद की। तो वे उन्हें अमरनाथ ले गए। जहां कथा के दौरान सुकदेव जी महाराज ने उसका श्रवण किया। फिर उसे कालांतर में लिपिबद्ध किया गया। 
 उपस्थित श्रद्धालुओं को संबोधित करते हुए कहा कि ईश्वर के प्रति निष्काम भाव से आत्मसमर्पण करना ही सच्ची भक्ति है। बतलाया कि वैदिक सनातन मार्ग के पथ पर चलने वाला व्यक्ति स्वयं में पंडित होता है। कहा कि दुनिया में चाहे कहीं भी रहे लेकिन अपने संस्कार और अपनी संस्कृति को मत छोड़िए अपने आचरण को शुद्ध रखिए यही आपकी पहचान है